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श्रीलंका, म्यांमार और तिब्बत से आए शरणार्थियों को भी नागरिकता दे सरकार: सुहास चकमा

अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Wed, 18 Mar 2020

सार

  • पाक, अफगान और बांग्लादेश से आए हिंदू, बौद्ध, सिख या इसाई पीड़ितों को ही नागरिकता का है प्रस्ताव
  • अन्य जगहों के लगभग छह लाख शरणार्थी रहते हैं भारत में

विस्तार

भारत में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अलावा, श्रीलंका, म्यांमार और तिब्बत जैसी अनेक जगहों से भी लाखों लोगों ने शरण ले रखी है। लेकिन नागरिकता संशोधन कानून में केवल तीन देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए लोगों को ही नागरिकता देने की बात कही गई है।

ऐसे में अन्य जगहों से आए शरणार्थियों ने सरकार से अपील की है कि वह इस कानून में अन्य जगहों से आए लोगों को भी शामिल करे। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 1,08,005 तिब्बती, 3,04,269 श्रीलंकाई तमिल, एक लाख से ज्यादा म्यांमार से आए अन्य लोग शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। लगभग 40 हजार रोहिंग्याओं को भी भारत में शरणार्थी के तौर पर मान्यता दी गई है।

मानवाधिकार संगठनों के एक समूह एनसीएटी के को-ऑर्डिनेटर सुहास चकमा ने बुधवार को कहा कि सरकार कुछ चुने हुए देशों से अवैध तरीके से आए हुए लोगों को तो नागरिकता दे रही है, लेकिन वह उन लोगों को नागरिता के लाभ से वंचित रख रही है, जो लंबे समय से इस देश में शांतिपूर्ण समुदाय की तरह रहते आ रहे हैं।

चकमा ने कहा कि सरकार ऐसा तब कर रही है जबकि उसे ठीक-ठीक यह भी नहीं मालूम है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से अवैध तरीके से आने वाले लोगों की सही-सही संख्या क्या है।

जबकि जिन छह लाख लोगों को शरणार्थी होने का प्रमाण पत्र दे चुकी है, उनके बारे में सरकार को सब जानकारी है। ऐसे में सरकार को अपनी स्थानीय राजनीति से ऊपर उठकर उन लोगों को भी नागरिकता का लाभ देना चाहिए जो इस देश में शरणार्थियों की तरह से लंबे समय से रह रहे हैं।

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